11/12/2007

जाने सूरज जलता क्यों है


जाने सूरज जलता क्यों है
इतनी आग उगलता क्यों है

रात हुई तो छुप जाता है
अंधियारे से डरता क्यों है

सुबह का निकला घर न आया
आवारा सा फ़िरता क्यों है

सुबह शाम और दोपहरी में
अपनें रंग बदलता क्यों है

अगर सुबह को फ़िर उगना है
तो फ़िर शाम को ढलता क्यों है

15 comments:

Shiv Kumar Mishra said...

बहुत बढ़िया, सर....

नीरज गोस्वामी said...

अनूप जी
"न तो साहित्य का बड़ा ज्ञाता हूँ, न ही कविता की भाषा को जानता हूँ, लेकिन फ़िर भी मैं कवि हूँ, क्यों कि ज़िन्दगी के चन्द भोगे हुए तथ्यों और सुखद अनुभूतियों को, बिना तोड़े मरोड़े, ज्यों कि त्यों कह देना भर जानता हूं ।"
मुझे आप की ये बात बहुत पसंद आयी क्यों की ये मेरी विचारधारा से बहुत कुछ मिलतीजुलती है.
आप की ग़ज़ल बहुत पसंद आयी, और भी सुनाइये ,कभी फुरसत मिले तो मेरे ब्लॉग पर भी आयीये, स्वागत है.
नीरज

बालकिशन said...

बहुत अच्छे. बहुत सुंदर. जारी रहें.

नीरज गोस्वामी said...

अनूप जी
आप ब्लॉग पर आए ग़ज़ल पढी और पसंद भी की.और क्या चाहिए भला ?
आते रहिएगा.
नीरज

पुनीत ओमर said...

अगर सुबह को फ़िर उगना है
तो फ़िर शाम को ढलता क्यों है
बहुत बढिया ....

Manish Kumar said...

बहुत खूब.. इतने सहज शब्दों में सूरज का कच्चा चिट्ठा खोल दिया आपने !

ghughutibasuti said...

सोचने की बात है । किन्तु सूरज या चन्दा या प्रकृति कुछ क्यों करते हैं कौन बता सकता है ।
सुन्दर रचना है ।
घुघूती बासूती

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` said...

यह बेहतरीन गज़ल पढकर बहुत प्रसन्नता हुई
दीपावली के उत्सव की शुभ कामनाएँ ...
परिवार के सभी को !
स स्नेह,
-- लावण्या

अनूप भार्गव said...

शिव कुमार जी, नीरज जी,बाल किशन जी,पुनीत, मनीश,घुघूति जी, लावण्या जी:

अच्छा लगा कि आप नें मेरी सूरज के साथ ली गई इस छोटी से चुटकी को गम्भीरता से लिया और पसन्द किया ।
स्नेह बनाये रखिये ..

शिव जी ! ये सर कौन हैं ? :-)

Shilpa Bhardwaj said...

acchi lagi kavita anoopji... dekhiyega.. blog pe kuch naya hai.,

अजित वडनेरकर said...

सूरज से मुखातिब थे आप और हम रहे देखते। बढ़िया कविता । पहली बार आने का अवसर मिला। अब अक्सर आना होगा।

अनूप भार्गव said...

अजीत जी:
ब्लौग पर आने के लिये शुक्रिया । आब आप आयेंगे तो कुछ लिखना ही पड़ेगा , वैसे आजकल लेखन ज़रा ’सुस्त’ सा पड़ा है ...

Kavi Kulwant said...

कितने दिन से मन था.. आप के पास आने का.. आज आ ही गया.. बहुत अच्छा लगा..
कवि कुलवंत

Unknown said...

होली की शुभ कामनाएं आपको सपरिवार - साभार - मनीष [और (चूंकि होली है) एक शिकायत - हर हफ्ते जलता सूरज ही मिल रहा है पिछले तीन महीनों से - आपने अजीत जी से एक वादा भी किया रहा?]

Anonymous said...

सूरज के सामने कोई देखने की हिम्मत नही करता, आपने इतने सारे सवाल दाग दिये?
बेचारा सूरज!

म्। हाशमी।