तुम कई बार
इस तरह
चुपचाप,
मेरे ज़हन में
आ कर बैठ जाती हो
कि मुझे
अपनी तनहाई
का भरम होने लगता है ,
और मैं
फ़िर से
तुम्हारे बारे में
सोचने लग जाता हूँ ।
न तो साहित्य का बड़ा ज्ञाता हूँ,
न ही कविता की
भाषा को जानता हूँ,
लेकिन फ़िर भी मैं कवि हूँ,
क्यों कि ज़िन्दगी के चन्द
भोगे हुए तथ्यों
और सुखद अनुभूतियों को,
बिना तोड़े मरोड़े,
ज्यों कि त्यों
कह देना भर जानता हूं ।
6 comments:
tum har bar...achchi kavita hai
SIR NAMSKAR
AAP KE BLOG PAR AANNA ACHCHA LAGA /
तनहाई का भरम
वाह
अच्छी कविता है
जिसे तन्हाई का भ्रम हो वो कितना खुशनसीब है
जिसे तन्हाई का गम हो वो कितना बदनसीब है
जिसके ज़हन में कोई आ जाये वो कितना खुशनसीब है
जिसके ज़हन से कोई चला जाये वो कितना बदनसीब है
बहुत खूब
आप ने ब्लॉग लिखना क्यों बंद किया?
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