1/27/2023

कविता बनी

 कविता बनी 

 

 

टूटते मूल्यों 

और विश्वासों की 

शृंखला में जब 

खुद की खुद से बनी 

कविता बनी 

 

कल्पना की उड़ान में 

सपनो के जहान में 

मिट्टी के घरोंदे बनाते 

जब उँगलियाँ सनी 

कविता बनी 

 

फूलों से गंध चुरा 

तितली से रंग 

अहसास के समंदर में 

सीपियाँ चुनी  

कविता बनी 

 

बात मीठी कही 

बात मन से कही 

ढली शब्दों में 

जब चाशनी 

कविता बनी 

 

कुछ कहा सुना 

सिर्फ़ देखा किए 

मूक थे होंठ 

फिर भी सुनी 

कविता बनी 

 

सिर्फ़ अपनी नही 

पीर जग की सही 

पूरे युग की व्यथा 

शब्दों में जनी 

कविता बनी 

 

 

 

 

 

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