1/10/2007

मुक्तक

गुनगुनी सी हवा है बहूँ ना बहूँ
अजनबी वेदना है सहूँ ना सहूँ
मुस्कुराते हुए गीत और छन्द में
अनमनी सी व्यथा है कहूँ ना कहूँ ?

12 comments:

Divine India said...

panne kai aur the shocha likhu ya na likhu,jab aaya tumhare dar par to bandhta hi chalaa gaya.

राकेश खंडेलवाल said...

जानता था कि पल पल अकेला ही हूँ
सोचता हूँ कहानी कहूँ न कहूँ
ताजमहली मुझे कर दिया पीर ने
इश्क पाकर तुम्हारा ढहूँ न ढहूँ

अनुराग श्रीवास्तव said...

मुक्तक और टिप्पणियां सभी लाजवाब हैं.

बधाई.

संजय बेंगाणी said...

सुन्दर

Unknown said...

सुन्दर....कभी लिखा था...
हवा हूँ

हवा हूँ.....
हल्की सी.... हँसती हुई....
पत्तों में गुदगुदी करती हुई.....
पतंग को चगती हुई....
बादल के पीछे चलती हुई....

हवा हूँ.....
गर्मी की लू में जलती हुई.....
सागर को तंग करती हुई....
बेचैन...बदमिज़ाज....मचलती हुई....

हवा हूँ.....
तूफाँ में बदलती हुई.....
बादल के संग बेरहम बरसती हुई....
तूफाँ मे कश्ती डुबोते हुई....

हवा हूँ.....
थोड़ी नम.... थोड़ी सँभली हुई....
घर के चूल्हे में जलती हुई....
फूलों को छू कर हँसती हुई....

जीते हुई....जिन्दगी देते हुई...

Dr.Bhawna Kunwar said...
This comment has been removed by the author.
Udan Tashtari said...

अति सुंदर, अनूप भाई.

Dr.Bhawna Kunwar said...

हवा बनके तुम यूँ ही बहते रहो
वेदना सदा जग की सहते रहो
मन में जो भी व्यथा हो तुम्हारे अगर
उसको खुद से खुद को ही कहते रहो
क्योंकि-
सूरज़ चमकता नहीं स्वयं के लिये।
नीर बहता नहीं स्वयं के लिये।
वृक्ष फलता नहीं स्वयं के लिये।
बादल बरसता नहीं स्वयं के लिये।

अनूप भार्गव said...

दिव्यभ,अनुराग,संजय,समीर भाई !
मेरी अनमनी व्यथा आप तक पहुँच सकी , उस के लिये धन्यवाद !
राकेश जी ! आप की प्रशंसा तो आशीश है ।
भावना जी ! अच्छी लगीं आप की पंक्तियां ।
बेजी ! बहुत अच्छा लिखती हो , तुम्हारे 'ब्लौग' पर और भी कविताएं पढीं ।

Manish Kumar said...

sundar !

Anonymous said...

Bahut barhiya laga ye muktak, maja aa gaya parh kar ..

Chintan Shukla said...

nice one..Cheers

Chintan