1/27/2023

 अगले खम्भे तक का सफ़र


याद है, 

तुम और मैं  

पहाड़ी वाले शहर की 

लम्बी, घुमावदार,

सड़्क पर

बिना कुछ बोले

हाथ में हाथ डाले

बेमतलब, बेपरवाह 

मीलों चला करते थे,

खम्भों को गिना करते थे,

और मैं जब 

चलते चलते

थक जाता था

तब तुम 

कोट की जेब से 

हाथ निकाले बग़ैर 

मन ही मन उँगलियों पर 

कुछ गिनने का बहाना 

करने के बाद 

मुझ से कहती थी  

बस

उस अगले खम्भे 

तक और

 

आज 

मैं अकेला ही

उस सड़्क पर निकल आया हूँ , 

खम्भे मुझे अजीब  

निगाह से 

देख रहे हैं

मुझ से तुम्हारा पता 

पूछ रहे हैं,

मैं थक के चूर चूर हो गया हूँ                                      

लेकिन वापस नहीं लौटना है,

हिम्मत कर के , 

उस अगले खम्भे तक पहुँचना है 

सोचता हूँ

तुम्हें तेज चलने की आदत थी,

शायद 

अगले खम्भे तक पुहुँच कर

तुम मेरा 

इन्तजार कर रही होगी  ! 

 

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