वृत्त की परिधि के
अलग अलग कोनों में
बैठे
दो बिन्दु हैं,
मैनें तो
अपनें हिस्से का
अर्धव्यास पूरा कर लिया,
क्या तुम
मुझसे मिलनें के लिये
केन्द्र पर आओगी ?
न तो साहित्य का बड़ा ज्ञाता हूँ,
न ही कविता की
भाषा को जानता हूँ,
लेकिन फ़िर भी मैं कवि हूँ,
क्यों कि ज़िन्दगी के चन्द
भोगे हुए तथ्यों
और सुखद अनुभूतियों को,
बिना तोड़े मरोड़े,
ज्यों कि त्यों
कह देना भर जानता हूं ।
6 comments:
बंधुवर ,यह प्रेमनिवेदनीय कविता गणितीय विचलन का शिकार है।एक तो वृत्त में कोने नहीं होते दूसरे परिधि पर कोई केन्द्र नहीं होता।आप तो बैठे हैं परिधि पर और न्योता दे रहे हैं केन्द्र पर मिलने का -माज़रा क्या है? क्या इसी लिये गालिब ने कहा है-इश्क ने गालिब निकम्मा कर दिया, वर्ना आदमी हम भी थे काम के।
बन्धुवर (आप का नाम नहीं पढ पाया):
आप नें कविता को पढा , इस ले लिये धन्यवाद । कविता के बारे में लिखा , इस के लिये और भी धन्यवाद।
आप नें वृत्त के कोनें न होनें की बात शायद ठीक कही (सिर्फ़ गाणित की कक्षा में बैठ कर देखें तो), लेकिन केन्द्र पर मिलनें की बात फ़िर भी सही है ।
कभी परिधि से अर्धव्यास की दूरी तय कर के देखिये और बताइये कि कहाँ मिलना चाहेंगे आप ?
इसी विशय पर एक और कविता लिख रहा हूँ , बताइयेगा कैसी लगी ?
इश्क ने गालिब निकम्मा तो कर दिया, फ़िर भी आदमी कुछ तो हैं काम के।
ला बोना जी:
मुझे तुम से कुछ भी न चाहिये
मुझे मेरे हाल पे छोड़ दो ...
आदर के साथ
अनूप :-)
मुझे तो यह चिन्ता है कि अगर ला बोना तुम्हारे पीछे पड़ गई तो डेट-वेट तो तुम सब भूल जाओगे और न ही परिधि, बिन्दुओं और केन्द्रों की बात करोगे क्योंकि पहले तो तुम्हें वह अबॉर्शन का कारण बनायेगी और फिर तुम्हें अबॉर्शन करवाने के नाम से डरायेगी मतलब ये कि अगर अब तक तुम समझते हो कि तुम वाकई किसी काम के हो तो वो तुम्हारा यह भ्रम भी दूर कर देगी उस की आवाज़ तुम्हें कानों में गूँजती सुनाई देगी " तू जहाँ-जहाँ चलेगा, मेरा साया साथ होगा" And then you will become a real poet, writing more about "figure" and less about circles... Navneet Bakshi
मुझे तो यह चिन्ता है कि अगर ला बोना तुम्हारे पीछे पड़ गई तो डेट-वेट तो तुम सब भूल जाओगे और न ही परिधि, बिन्दुओं और केन्द्रों की बात करोगे क्योंकि पहले तो तुम्हें वह अबॉर्शन का कारण बनायेगी और फिर तुम्हें अबॉर्शन करवाने के नाम से डरायेगी मतलब ये कि अगर अब तक तुम समझते हो कि तुम वाकई किसी काम के हो तो वो तुम्हारा यह भ्रम भी दूर कर देगी उस की आवाज़ तुम्हें कानों में गूँजती सुनाई देगी " तू जहाँ-जहाँ चलेगा, मेरा साया साथ होगा" And then you will become a real poet, writing more about "figure" and less about circles... Navneet Bakshi
कृपया मेरी प्रतिक्रिया में 'यह कहलवा भी देते हैं' के स्थान पर 'यह भी कहलवा देते हैं' पढ़ें . जल्दबाजी में लिखने से कई बार अभिप्राय बदल बदल जाते हैं . असुविधा के लिए खेद है .
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