अंको के गणित
और तर्क की
ज्यामिती के दायरे
में कैद ज़िन्दगी
एक कठिन समीकरण
बन गई थी ।
तुम चुपके से आईं
और मेरे कान में
प्यार से
बस इतना ही कहा
'सुनो' .....
मैं मुस्कुरा दिया
और अचानक,
ज़िन्दगी के
सभी कटिन प्रश्न
बड़े आसान
से लगनें लगे ।
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अनूप
7/01/2005
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3 comments:
बढ़िया समाधान है। 'सुनो'...।
एक अन्दाज ये भी
तुम चुपके से आईं
और मेरे कान में
प्यार से
बस इतना ही कहा
'सुनो' .....
और जिन्दगी
वर्ग समीकरण बन गयी
जिसका हल वास्तविक है
और
काल्पनिक भी
आशीष जी:
अब यह तो अपनें अपनें 'सुननें - सुनानें' का तरीका है ...
अच्छा लगा आप का अन्दाज़ भी :-)
अनूप
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