एक अरसा हुआ दम को निकले हुए
हाथ उस नें जो छूआ तो ज़ुम्बिश हुई ।
6/28/2005
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न तो साहित्य का बड़ा ज्ञाता हूँ,
न ही कविता की
भाषा को जानता हूँ,
लेकिन फ़िर भी मैं कवि हूँ,
क्यों कि ज़िन्दगी के चन्द
भोगे हुए तथ्यों
और सुखद अनुभूतियों को,
बिना तोड़े मरोड़े,
ज्यों कि त्यों
कह देना भर जानता हूं ।
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