1/22/2006

हथेली पे सूरज उगाया है मैंने ...

ख्वाबों को ऐसे सजाया है मैंने
हथेली पे सूरज उगाया है मैंने ।

आओ न तुम , तो मर्जी तुम्हारी
बड़े प्यार से पर बुलाया है मैंनें ।

लिखा ओस से जो तेरा नाम ले के
वही गीत तुम को सुनाया है मैंने ।


जीवन की सरगम तुम्ही से बनी है
तुझे नींद में गुनगुनाया है मैंने ।

मेरे आँसुओं का सबब पूछते हो
कतरा था यूँ ही बहाया है मेंने ।

6 comments:

Pratyaksha said...

कोई पलाश दहकता था कानों के पीछे
कभी फूलों को यूँ भी सजाया है मैंने

Sarika Saxena said...

बहुत सुन्दर...

Anonymous said...

simple and beautiful

Pratyaksha said...

आपको यहाँ टैग किया गया

Dharni said...

बहुत अच्छा लिखा है...मैं भी आपके पास ही न्यू जर्सी में रहता हूं।

Anonymous said...

बहुत सुन्दर है....
बहुत अच्छा लिखा है......

Prithvi Raj Chauhan