रिश्तों को सीमाओं में नहीं बाँधा करते
उन्हें झूँठी परिभाषाओं में नहीं ढाला करते
उडनें दो इन्हें उन्मुक्त पँछियों की तरह
बहती हुई नदी की तरह
तलाश करनें दो इन्हें सीमाएं
खुद ही ढूँढ लेंगे अपनी उपमाएं
होनें दो वही जो क्षण कहे
सीमा वही हो जो मन कहे
8/09/2006
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
7 comments:
बढ़िया चाहना है। वैसे परिभाषायें कैसे झूठी हो जाती हैं। ये तो परिभाषा गढ़ने वाले के ऊपर निर्भर है कि कितनी सक्षमता तथा ईमानदारी से उसने रिश्ते को परिभाषित किया है।
शायद आप ठीक हैं । कविता जब लिखी गई थी तब मैनें 'कृत्रिम परिभाषाओं' का प्रयोग किया था फ़िर पता नहीं क्यों उसे (सरल बनानें की कोशिश में) बदल दिया । शायद अब अर्थ ठीक से पहुँचे ।
'बैकस्पेस' key दबानें को मन कर रहा है
achha likhte ho dost!!
ek sawaal tha...aap font kaunsa use karte ho?
Beautiful line, Seema Wahin Jo Mann Hai.N.
The only boundaries are those of the mind.
Lovely.
Thanks for posting it.
Regards,
Chirayu
इसे आज फिर पढ़ा। वाह! बहुत ही सुंदर पंक्तियाँ हैं और बहुत अर्थपूर्ण।
इसे आज फिर पढ़ा। वाह! बहुत ही सुंदर पंक्तियाँ हैं और बहुत अर्थपूर्ण।
डा. रमा द्विवेदी....
अनूप जी की अनुपम अभिव्यक्ति बहुत अनुपम है विशेषकर यह पन्क्तियां.....
होनें दो वही जो क्षण कहे
सीमा वही हो जो मन कहे
Post a Comment