कौन कहता है
भाग्य की रेखाएं
बदल नहीं सकती ?
मुझे याद है
जब तुमने पहली बार
अपनी कोमल उँगलियों से
मेरी हथेली को कुरेदा था ,
कौन कहता है
भाग्य की रेखाएं
बदल नहीं सकती ?
4/14/2007
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न तो साहित्य का बड़ा ज्ञाता हूँ,
न ही कविता की
भाषा को जानता हूँ,
लेकिन फ़िर भी मैं कवि हूँ,
क्यों कि ज़िन्दगी के चन्द
भोगे हुए तथ्यों
और सुखद अनुभूतियों को,
बिना तोड़े मरोड़े,
ज्यों कि त्यों
कह देना भर जानता हूं ।
18 comments:
सुंदर रचना, बधाई अनूप भाई!!
बहुत सुंदर!!
अनूप भाई,
नमस्ते !
आपने जब इस कविता का न्यु योर्क शहर मेँ , पाठ किया था तब भी और आज इसे आपके "जाल घर " पर पढते समय भी वही आनँद मिला है -लिखते रहीये, हिन्दी भाषा की ऐसी ही निष्ठापूर्वक सेवा करते रहिये ..
स स्नेह,लावण्या
बहुत सुन्दर!
घुघूती बासूती
अनूपजी ,बहुत सुन्दर.इसी तर्ज़ पर पेश है ,
नए साल में
एक लकीर नई
हाथ तुम्हारा
बहुत सुंदर । अनूप जी भारी साहित्यकारों की क्या चिंता । वजन बढ़ने की समस्या हो जाती है । आपकी कविता पसंद आई ।
प्रेम की अनूठी कविता तथा प्रेम से उपजे आत्मविश्वास और भरोसे की कविता . इसी भरोसे के बल पर पृथ्वी अपनी धुरी पर घूम रही है .
समीर भाई, बेजी, घुघूती जी:
आप को कविता पसन्द आई, जान कर उत्साह बढा ।
लावण्या जी:
आप के उदार वचनों और स्नेह के लिये धन्यवाद।
रविश जी :
वज़न बढनें की समस्या तो है :-)
पूनम:
तुम्हारा हायकु अच्छा लगा । ईकविता की तरफ़ ध्यान दो ।
पूनम:
तुम्हारे 'हायकु' की तर्ज पर :
-
मेरा भविष्य
जानना चाहती हो
हाथ दिखाओ ?
-
धन्यवाद अनूपजी
हाथ दिखाओ
मिला कर लकीरें
सपने बुनें
upne hi haatho se upna bhagya badalne ki koshish mein
Yeh bhi ek tarika hai zindagi bita ne ke
Anup Bhaiya,
Bas itna hi kahunga ke Aap Likhte Rahein, Hum Padhte Rahenge.
Bahut sunder rachna hai.
Utpal
एक कशिश सी है इस रचना में। काफी समय से आपका ब्लॉग देखती थी कुछ न पाकर निराशा होती थी, किन्तु सारी निराशा इस रचना को पढ़कर दूर हो गयी है। बहुत-बहुत बधाई।
अनूप भाई जाने कितनी बार पढ़ चूका हूँ इन पंक्तियों को, मालूम नही क्यों हर बार नयी सी लगती है मुझे ये ....
- - आपका छोटा भाई सजीव सारथी
Very interesting... good work.. I don't have a great command over Hindi.. but really enjoyed your work.
आ गया पटाखा हिन्दी का
अब देख धमाका हिन्दी का
दुनिया में कहीं भी रहनेवाला
खुद को भारतीय कहने वाला
ये हिन्दी है अपनी भाषा
जान है अपनी ना कोई तमाशा
जाओ जहाँ भी साथ ले जाओ
है यही गुजारिश है यही आशा ।
NishikantWorld
Anoop ji,
Shringaar se paripoorna pankityaan hain .
Subhadra kumari chauhan ki Bachpan ki yaad dilati hui ..
Baar Baar aati hi mujhko madhur yaad bachpan teri,
Gaya le Gaya tu jeevan ki,
Sabse Mast Khushi meri ..
Mi aaaj tak subhadra ji ko "Mast" ke usage pe badhaii deta hoon .. aapki pankitoon ni vahi bhaav unmukt kar diye ..
badhiyaan
सुपर्ब ...
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