तुम्हारे शब्द मुझ तक पहुँच ही कहां पाते हैं ?
अक्सर जमाने की
ज़बरदस्ती ओढाई गई
तहज़ीब की चाशनी में
फ़िसल के लौट जाते हैं ,
तुम्हारे शब्द मुझ तक पहुँच ही कहां पाते हैं ?
तुम्हारे होठों के गोल होने से शुरु हो कर
शब्दों के मेरे कान तक पहुँचने का समय
एक युग के समान लगता है ,
किताबों में पढा था ,
प्रकाश की गति ध्वनि से तेज हुआ करती है ,
शायद इसीलिये
तुम्हारे आंखो से कहे बोल
तुम्हारी आवाज़ से पहले ही
मेरी आंख की कोर तक पहुँच कर ठहर जाते है ।
तुम्हारे शब्द मुझ तक पहुँच ही कहां पाते हैं ?
2/05/2009
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21 comments:
"तहज़ीब की चाशनी में
फ़िसल के लौट जाते हैं"
खूब कहा है आपने अनूप जी!
"आंखो से कहे बोल . . ."
सुन्दर कविता !
अक्सर जमाने की
ज़बरदस्ती ओढाई गई
तहज़ीब की चाशनी में
फ़िसल के लौट जाते
कितना सुंदर कहाः है आपने
तुम्हारे होठों के गोल होने से शुरु हो कर
मेरे कानों तक पहुँचने का समय
एक युग के समान लगता है ...
क्या बात है भाई .... बहुत ख़ूब !!
इसीलिए कहते हैं - LIGHT TRAVELS FASTER THAN SOUND. तभी तो उनकी आवाज़ और आपके देखने तक का समय सदी हो जाता है:)
अच्छी कविता के लिए बधाई अनूपजी।
अरसे के बाद पढ़ी आपकी भौतिकी के नियमों से परिपूर्ण कविता. बधाई स्वीकारें. आपकी पंक्तियों ने याद दिला दी मुझे अपने एक गीत की
शब्दों के आकॄति से लेकर सुर में ढलने तक की दूरी
तय करते करते शब्दों के अक्सर अर्थ बदल जाते हैं.
सादर
राकेश
बहुत सुन्दर रचना है, उत्कृष्ट!
बहुत अच्छी रचना लिखी है....ढेरो बधाई।
ऐसे ही लिखते रहिये अनूपदा, बहुत दिनों (महीनों) बाद लिखा है कुछ आपने।
Bahut dino baad aapne likha Anoop bhai aur badhiya likha ..
Ab se niymit likhiye na :)
तहज़ीब की चाशनी waah..gulzaarish...
तुम्हारे आंखो से कहे बोल
तुम्हारी आवाज़ से पहले ही
मेरी आंख की कोर तक पहुँच कर रुक जाते है ।
अच्छा लगी आपकी यह रचना
kya baath hai...really good..
want to know that, which application are you using for typing in Hindi..is it user friendly..? when i was searching for the user friendly tool ..found..'quillpad'..do u use the same...?
शार्दुला, मनविन्दर जी, मीत जी , विनय , संगीता जी, मानोशी , लावण्या जी, मौली प्रशाद जी , रंजना जी :
आप को कविता अच्छी लगी, लिखना सार्थक हुआ।
पारुल ! कविता का ’गुलज़ारिश’ होना तो बहुत बड़ी बात है । धन्यवाद ।
राकेश जी : आप का कविता को पसन्द करना मायने रखता है । आप की पंक्तियां बहुत सुन्दर हैं ।
Annonymous जी ! कविता पसन्द करने के लिये धन्यवाद ।मैं हिन्दी में लिखने के लिये ’बारहा’ ( www.baraha.com ) का प्रयोग करता हूँ ।
अनूप दा,
आज आपका मेल पढ़ के पहली बार गूगल इंडिक में लिख रही हूँ, सोच रही थी कि कहाँ पर क्या लिखूँ. फिर देखा आप के ब्लोग पे १३ कमेन्टस हैं. इसलिए आपको धन्यवाद देते हुए उसे १४ बना रही हूँ.
आपसे हिन्दी प्रेम के बारे में अभी बहुत कुछ सीखना बाक़ी है :)
मुझे पक्का है कि मेरे सारे शब्द आप और भाभी तक पहुँच जाते हैं :)
प्रणाम भाई साहब,
कविता कोश में आपकी तस्वीर देखी थी, आप इतना अच्छा लिखते हैं इसका अहसास आज हुआ कविता भीतर तक पहँची और अब इसे पढ़ कर जो कुछ मेरे भीतर हो रहा है कैसे बयान करूँ, मुझे आप से ईर्ष्या हो रही है, काश!मैं आप जैसा लिख पाता!!!!!!!!!!!!!!
आपको सलाम।
एक जो कमैट डिलीट किया है वो मैने ही डिलीट किया है। उसमें कुछ ग़लतियाँ नज़र आई और मैने उसे डिलीट करके नया लिख डाला।
शार्दुला:
धन्यवाद । हिन्दी की सेवा तो तुम कर ही रही हो , इतनी अच्छी अच्छी कविताएं लिख कर ।
प्रकाश जी:
आप को मेरी कविता पसन्द आई । अच्छा लगा । कविता कोश में आप का योगदान लगभग हर रोज़ देखता हूँ, सराहनीय है ।
मैं एक याहू समूह ईकविता से भी जुड़ा हूँ , देखियेगा ।
ekvigyan smmat tulnatmak kvita hai jisme prakash or awaz ki ot lekar manveeya bhavnayon ke sootra bataye gaye hai ,achchi abhivykti ke liye badhi
बहुत सुंदर रचना......ब्लॉग पसंद आया
भावना जी:
ब्लौग पर आने और कविता को पसन्द करने के लिये आभार ।
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