bahut der se aapki kavitayen padh raha hoon ..is kavita ne man ko kahin rok sa diya hai .. aap bahut accha likhte hai ...aapki kavitao ki bhaavabhivyakti bahut sundar hai ji ..
तो कोलाहल में भी बोलने लगता है मौन
ye pankhtiyan apne aap me kuch kahti hai ...
meri badhai sweekar kare,
dhanyawad.
vijay pls read my new poem : http://poemsofvijay.blogspot.com/2009/05/blog-post_18.html
आद. श्री भार्गव जी, नमस्कारम्! आपका सचित्र नामोल्लेख ‘गोलकोण्डा दर्पण’ में देखता-पढ़ता रहा हूँ...देर से ही सही, आज आपके ब्लॉग पर आपसे सीधा संवाद सुखद लग रहा है!
आपकी यह छोटी-सी रचना काफी कुछ कह गयी है...!
जीवन में कई बार ऐसे भी मौक़े आते है जब ‘शब्द’ की जगह ‘मौन’ ही शोभा देता है! कई बार मौन बहुत कुछ कह जाता है; मौन में वह सामर्थ्य भी है कि शब्द को पीछे...बहुत पीछे छोड़ सकता है!
न तो साहित्य का बड़ा ज्ञाता हूँ, न ही कविता की भाषा को जानता हूँ, लेकिन फ़िर भी मैं कवि हूँ, क्यों कि ज़िन्दगी के चन्द भोगे हुए तथ्यों और सुखद अनुभूतियों को, बिना तोड़े मरोड़े, ज्यों कि त्यों कह देना भर जानता हूं ।
34 comments:
बढिया ‘खयाल’ है अनूपजी। चलो हम मौन हो जाते हैं:)
जय हो!! ज्ञानचक्षु खुल गये.
अनूपानन्द स्वामी जी की जय!!
कोलाहल में भी
बोलने लगता है मौन
वह बहुत बढ़िया . भीड़ में मौन ? बधाई .
बहुत बेहतरीन ख्याल है।बहुत बढिया!!
अत्यन्त प्रभावपूर्ण अभिव्यक्ति. धन्यवाद
ऐसे में
शब्दों के अर्थ बदल लेना ही उचित है ।
bahut achhe...
जब शब्द
अधिक महत्वपूर्ण होने लगें
और भावनाएं गौण
तो कोलाहल में भी
बोलने लगता है मौन
ऐसे में
शब्दों के अर्थ बदल लेना ही उचित है ।
gagar me sagar bhar diya...
प्रस्ताव पर विचार किया जा सकता है!
चलिये आपकी बात मान लेते हैँ :)
Kolahal mein moan.....kya baat hai..
Sadhanyavaad....Badhai
Very good one, Sir.
God bless
RC
Thanks for joining my blog. My new blog's link is
http://parastish.blogspot.com/
God bless
RC
दिलचस्प ....
kya kisi ne shabdon ke arth diye hain k badal lega?
Wah..वाह भार्गव जी वाह
bahut badhiya..
lekin mujhe matlab nahi samjh aaya..
aap samjhaayenge ki aap kya kahna chah rahe hai ?? :(
bahut der se aapki kavitayen padh raha hoon ..is kavita ne man ko kahin rok sa diya hai .. aap bahut accha likhte hai ...aapki kavitao ki bhaavabhivyakti bahut sundar hai ji ..
तो कोलाहल में भी
बोलने लगता है मौन
ye pankhtiyan apne aap me kuch kahti hai ...
meri badhai sweekar kare,
dhanyawad.
vijay
pls read my new poem :
http://poemsofvijay.blogspot.com/2009/05/blog-post_18.html
bahut khoobsurat
'कोलाहल में बोलते मौन'की आवाज़ कितने लोग सुन पाते हैं? बहुत ख़ूब!
बहुत सही कहा जनाब आपने
बात तो पते की कही है जनाब, बहुत खूब , साधुवाद ...
waah...waah...
Good one
par shabdon ke arth badalne par adhik kolaahal to na hoga......
"एक ख़याल बहुत मनभावन है"। बधाई-मुबारकबाद व धन्य्वाद।
वरना शब्द अपने आप अपना अर्थ बदल लेंगे ।
अनूप जी,
आरज़ू चाँद सी निखर जाए, ज़िंदगी रौशनी से भर जाए।
बारिशें हों वहाँ पे खुशियों की, जिस तरफ आपकी नज़र जाए।
जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनाएँ।
………….
गणेशोत्सव: क्या आप तैयार हैं?
आभार जाकिर भाई । आप की शुभ कामनाओं के लिये और आप ने याद रखा , इस के लिये .
bahut sunder.
आद. श्री भार्गव जी,
नमस्कारम्!
आपका सचित्र नामोल्लेख ‘गोलकोण्डा दर्पण’ में देखता-पढ़ता रहा हूँ...देर से ही सही, आज आपके ब्लॉग पर आपसे सीधा संवाद सुखद लग रहा है!
आपकी यह छोटी-सी रचना काफी कुछ कह गयी है...!
जीवन में कई बार ऐसे भी मौक़े आते है जब ‘शब्द’ की जगह ‘मौन’ ही शोभा देता है! कई बार मौन बहुत कुछ कह जाता है; मौन में वह सामर्थ्य भी है कि शब्द को पीछे...बहुत पीछे छोड़ सकता है!
जितेन्द्र जी:
आप ने कविता को पसन्द किया , अच्छा लगा ।
जी सहमत हूं अभिव्यक्ति से
गागर में सागर. बधाई.
आदरणीय सलिल जी:
आप ने कविता को पसन्द किया , अच्छा लगा ।
आभार
अनूप
बहुत गहरा लिखा है, मौन में वास्तव में बहुत ताकत होती है। समीर जी के अनुसार यह सच में ज्ञानचक्षु खोल देने का प्रयास है।
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