10/07/2005

एक गज़ल फ़िर से .....

परिधि के उस पार देखो
------------------------

परिधि के उस पार देखो
इक नया विस्तार देखो ।

तूलिकायें हाथ में हैं
चित्र का आकार देखो ।

रूढियां, सीमा नहीं हैं
इक नया संसार देखो

यूं न थक के हार मानो
जिन्दगी उपहार देखो ।

उंगलियाँ जब भी उठाओ
स्वयं का व्यवहार देखो

मंजिलें जब खोखली हों
तुम नया आधार देखो ।

हाँ, मुझे पूरा यकीं है
स्वप्न को साकार देखो ।

---------

2 comments:

devika said...

kavita bahut achchhi lagi.bhasha meethi hai.saadhuvaad.----------devika

Shakuntala said...

बड़ी सहजता से छोटे से छंद में महत्त्वपूर्ण बात कह दी है। साधुवाद!!