2/22/2009

एक ख़याल


जब शब्द
अधिक महत्वपूर्ण होने लगें
और भावनाएं गौण
तो कोलाहल में भी
गूंजने लगता है मौन

ऐसे में
शब्दों के अर्थ बदल लेना ही उचित है ।
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34 comments:

चंद्रमौलेश्वर प्रसाद said...

बढिया ‘खयाल’ है अनूपजी। चलो हम मौन हो जाते हैं:)

Udan Tashtari said...

जय हो!! ज्ञानचक्षु खुल गये.

अनूपानन्द स्वामी जी की जय!!

समय चक्र said...

कोलाहल में भी
बोलने लगता है मौन
वह बहुत बढ़िया . भीड़ में मौन ? बधाई .

परमजीत सिहँ बाली said...

बहुत बेहतरीन ख्याल है।बहुत बढिया!!

Himanshu Pandey said...

अत्यन्त प्रभावपूर्ण अभिव्यक्ति. धन्यवाद

Gaurav Malik said...

ऐसे में
शब्दों के अर्थ बदल लेना ही उचित है ।

bahut achhe...

प्रशांत मलिक said...

जब शब्द
अधिक महत्वपूर्ण होने लगें
और भावनाएं गौण
तो कोलाहल में भी
बोलने लगता है मौन

ऐसे में
शब्दों के अर्थ बदल लेना ही उचित है ।

gagar me sagar bhar diya...

अनूप शुक्ल said...

प्रस्ताव पर विचार किया जा सकता है!

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` said...

चलिये आपकी बात मान लेते हैँ :)

Poonam Agrawal said...

Kolahal mein moan.....kya baat hai..

Sadhanyavaad....Badhai

Straight Bend said...

Very good one, Sir.

God bless
RC

Pritishi said...

Thanks for joining my blog. My new blog's link is
http://parastish.blogspot.com/

God bless
RC

अनिल कान्त said...

दिलचस्प ....

रवीन्द्र दास said...

kya kisi ne shabdon ke arth diye hain k badal lega?

योगेन्द्र मौदगिल said...

Wah..वाह भार्गव जी वाह

SAHITYIKA said...

bahut badhiya..
lekin mujhe matlab nahi samjh aaya..
aap samjhaayenge ki aap kya kahna chah rahe hai ?? :(

vijay kumar sappatti said...

bahut der se aapki kavitayen padh raha hoon ..is kavita ne man ko kahin rok sa diya hai .. aap bahut accha likhte hai ...aapki kavitao ki bhaavabhivyakti bahut sundar hai ji ..

तो कोलाहल में भी
बोलने लगता है मौन

ye pankhtiyan apne aap me kuch kahti hai ...

meri badhai sweekar kare,

dhanyawad.

vijay
pls read my new poem :
http://poemsofvijay.blogspot.com/2009/05/blog-post_18.html

सुरभि said...

bahut khoobsurat

Dr. Amar Jyoti said...

'कोलाहल में बोलते मौन'की आवाज़ कितने लोग सुन पाते हैं? बहुत ख़ूब!

Saleem Khan said...

बहुत सही कहा जनाब आपने

शागिर्द - ए - रेख्ता said...

बात तो पते की कही है जनाब, बहुत खूब , साधुवाद ...

Divya Narmada said...

waah...waah...

Bhawna said...

Good one

par shabdon ke arth badalne par adhik kolaahal to na hoga......

http://ghazalkenam.blogspot.com said...

"एक ख़याल बहुत मनभावन है"। बधाई-मुबारकबाद व धन्य्वाद।

शरद कोकास said...

वरना शब्द अपने आप अपना अर्थ बदल लेंगे ।

Dr. Zakir Ali Rajnish said...

अनूप जी,
आरज़ू चाँद सी निखर जाए, ज़िंदगी रौशनी से भर जाए।
बारिशें हों वहाँ पे खुशियों की, जिस तरफ आपकी नज़र जाए।
जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनाएँ।

………….
गणेशोत्सव: क्या आप तैयार हैं?

अनूप भार्गव said...

आभार जाकिर भाई । आप की शुभ कामनाओं के लिये और आप ने याद रखा , इस के लिये .

mridula pradhan said...

bahut sunder.

जितेन्द्र ‘जौहर’ Jitendra Jauhar said...

आद. श्री भार्गव जी,
नमस्कारम्‌!
आपका सचित्र नामोल्लेख ‘गोलकोण्डा दर्पण’ में देखता-पढ़ता रहा हूँ...देर से ही सही, आज आपके ब्लॉग पर आपसे सीधा संवाद सुखद लग रहा है!

आपकी यह छोटी-सी रचना काफी कुछ कह गयी है...!

जीवन में कई बार ऐसे भी मौक़े आते है जब ‘शब्द’ की जगह ‘मौन’ ही शोभा देता है! कई बार मौन बहुत कुछ कह जाता है; मौन में वह सामर्थ्य भी है कि शब्द को पीछे...बहुत पीछे छोड़ सकता है!

अनूप भार्गव said...

जितेन्द्र जी:

आप ने कविता को पसन्द किया , अच्छा लगा ।

Girish Kumar Billore said...

जी सहमत हूं अभिव्यक्ति से

Divya Narmada said...

गागर में सागर. बधाई.

अनूप भार्गव said...

आदरणीय सलिल जी:

आप ने कविता को पसन्द किया , अच्छा लगा ।

आभार

अनूप

arbuda said...

बहुत गहरा लिखा है, मौन में वास्तव में बहुत ताकत होती है। समीर जी के अनुसार यह सच में ज्ञानचक्षु खोल देने का प्रयास है।