8/14/2012

तुम

 
तुम कई बार
इस तरह
चुपचाप,
मेरे ज़हन में
आ कर बैठ जाती हो
कि मुझे
अपनी तनहाई
का भरम होने लगता है ,
और मैं
फ़िर से
तुम्हारे बारे में
सोचने लग जाता हूँ ।

6 comments:

कबीर कुटी - कमलेश कुमार दीवान said...

tum har bar...achchi kavita hai

सुनील गज्जाणी said...

SIR NAMSKAR
AAP KE BLOG PAR AANNA ACHCHA LAGA /

Rajendra Swarnkar : राजेन्द्र स्वर्णकार said...


तनहाई का भरम

वाह
अच्छी कविता है

Anonymous said...

जिसे तन्हाई का भ्रम हो वो कितना खुशनसीब है
जिसे तन्हाई का गम हो वो कितना बदनसीब है
जिसके ज़हन में कोई आ जाये वो कितना खुशनसीब है
जिसके ज़हन से कोई चला जाये वो कितना बदनसीब है

radha tiwari( radhegopal) said...

बहुत खूब

lifestyletips.in said...

आप ने ब्लॉग लिखना क्यों बंद किया?