8/28/2005
तुम ने खुशबु की तरह ......
शुरुआत तो गज़ल की कोशिश से हुई थी लेकिन बहर और वज़न सब गलत हैं । बस जो ठीक लगे , वही समझ कर पढ लें :
तुम ने खुशबु की तरह मुझ को चुराया होगा
एक अरसा लमहे में बिताया होगा ।
मैं तुम्हे ढूँढता रहा गुलशन गुलशन
तुम नें फ़ूलों में कहीं खुद को छुपाया होगा ।
मैं तो ख्वाब की मानिंद गुजर जाता हूँ
अपनी पलकों में मुझे तुम ने सजाया होगा ।
जब किसी ने कहीं पे मेरा नाम लिया
तुम नें उँगली में दुपट्टॆ को घुमाया होगा
तुम्हें न देखूँ अगर तो, दर्द उठता है कहीं
तुम नें भी टीस को हौले से दबाया होगा ।
अनूप भार्गव
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7 comments:
ये नमी सी मेरी आँखों में क्यों बेवजह छाई
तुमने शायद खुद को आँसुओं में डुबाया होगा
प्रत्यक्षा
शेर खूबसूरत बन पङे हैं।
बहुत खूब!
हर शहर में है मेरी इस ग़ज़ल का चर्चा,
तूने शायद मेरा इक शेर सुनाया होगा।
बहुत सुन्दर गज़ल है , आप को पढनें में आनन्द आता है , लिखते रहिये
वाह अनूप दा,
आज भ्रमण करते हुये आप के चिट्ठा जगत में प्रवेश किया अचानक। आप के खत और लोगों के जवाब पढ कर हँसते हँसते बुरा हाल हो गया।
--मानोशी
lekna ek kala hain jo lekh gaya wohi bhala hain....
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