परिधि के उस पार देखो
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परिधि के उस पार देखो
इक नया विस्तार देखो ।
तूलिकायें हाथ में हैं
चित्र का आकार देखो ।
रूढियां, सीमा नहीं हैं
इक नया संसार देखो
यूं न थक के हार मानो
जिन्दगी उपहार देखो ।
उंगलियाँ जब भी उठाओ
स्वयं का व्यवहार देखो
मंजिलें जब खोखली हों
तुम नया आधार देखो ।
हाँ, मुझे पूरा यकीं है
स्वप्न को साकार देखो ।
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10/07/2005
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2 comments:
kavita bahut achchhi lagi.bhasha meethi hai.saadhuvaad.----------devika
बड़ी सहजता से छोटे से छंद में महत्त्वपूर्ण बात कह दी है। साधुवाद!!
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