12/23/2006

दो मुक्तक

तुम को देखा तो चेहरे पे नूर आ गया
हौले हौले ज़रा सा सुरूर आ गया
तुम जो बाँहों में आईं लजाते हुए
हम को खुद पे ज़रा सा गुरूर आ गया

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ज़िन्दगी गुनगुनाई , कहो क्या करें ?
चाँदनी मुस्कुराई, कहो क्या करें ?
मुद्दतों की तपस्या है पूरी हुई
आप बाँहों में आईं, कहो क्या करें ?

4 comments:

Unknown said...

चाँद को देखकर मौज़ें उठी....
चाँदनी भी उतर लहरों पर चली...
चाँद समन्दर की बाहों में....
आगोश की चाह में आरज़ू जली....

Anonymous said...

बहुत बढिया

Anonymous said...

मुद्दतों की तपस्या है पूरी हुई
आप बाँहों में आईं, कहो क्या करें ?

अपनी किस्मत पर इतराईये. और क्या?
मजाक खत्म. मुक्तक सुन्दर है.

अनूप भार्गव said...

बेजी , शुएब :
धन्यवाद आप को मुक्तक पसन्द आये ।
संजय भाई ! अपनी किस्मत पर इतराने के बाद ज़रा और भी कुछ सोचिये , संभावनाएं और भी हैं .........