6/16/2008

मुक्तक


मीठी यादों की एक निशानी देखूँ
जज़्बों में पहचान पुरानी देखूँ
मैं जिसमे किरदार हुआ करता था
तेरे चेहरे पे वो कहानी देखूँ ।

22 comments:

Pratyaksha said...

वाह !
(लेकिन ओह !
तेरे चेहरे पर वो कहानी देखूँ
किरदार गये वक्तों में ..था तो मैं ही
पर , अलास (अंग्रेज़ी वाला ) हीरो था कोई और
और मैं सिर्फ
कॉमेडी रोल की चार लाईना ही ..)
अब जूते चप्पल मत मारियेगा :-)

नीरज गोस्वामी said...

अनूप जी
कितने कम शब्दों में कितनी सारी बात कह गए आप. वाह. बहुत खूब.
नीरज

पारुल "पुखराज" said...

bahut badhiyaa...

Udan Tashtari said...

बहुत उम्दा.

कभी मौका लगे तो वो कहानी भी सुनाईयेगा जिसमें आप किरदार थे. :)

अनूप भार्गव said...

नीरज जी, पारुल ! मुक्तक पसन्द करने के लिये धन्यवाद ।
समीर ! उस 'कहानी की कहानी' तो कभी फ़ुरसत से सुनायेंगे ।
प्रत्यक्षा ! हाँ ’रोल’ बदल जाने से कहानी कितनी बदल जाती है ? :-) । तुम्हारी ज़मीन पर चार लाइना हाज़िर हैं :

ढलते मौसम में इक शाम सुहानी देखूँ
अपनी तस्वीर भी देखूँ तो पुरानी देखूँ
आरजु ऐसी न थी ये वक्त भी आ जायेगा
अपने सर पे तेरे जूतों की निशानी देखूँ
:-)

Dr. Chandra Kumar Jain said...

अच्छी प्रस्तुति.....गहरा ख़याल.
=======================
डा.चंद्रकुमार जैन

Pratyaksha said...

अब वाकई आपने जूता क्या सर भी तोड़ डाला :)))

neeraj tripathi said...

बढ़िया ..

ढलते मौसम में इक शाम सुहानी देखूँ
अपनी तस्वीर भी देखूँ तो पुरानी देखूँ
आरजु ऐसी न थी ये वक्त भी आ जायेगा
अपने सर पे तेरे जूतों की निशानी देखूँ

ये ज्यादा बढ़िया...

डॉ .अनुराग said...

वाह सर जी....आप तो छा गये

Vinaykant Joshi said...

aur muktako ka intajar hai |

योगेन्द्र मौदगिल said...

वाह-वाह बंधुवर,
मजा आ गया..
अन्य मुक्तकों की प्रतीक्षा रहेगी..

श्रद्धा जैन said...

bhaut achha

sandhyagupta said...

अनूप जी,
आपकी रचनायें देखी। ये गम्भीरं भावबोध और सहज अभिव्यक्ति की रचनायें हैं। बधाई! शुभकामनायें!
संध्या

sandhyagupta said...
This comment has been removed by the author.
sandhyagupta said...

aapne khwab bunna kyoon band kar diya, likhna kyoon band kar diya?

guptasandhya.blogspot.com

सहज साहित्य said...

भाई अनूप जी
मुक्तक मन को छू गया ।
रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु'

Sujata Dua said...

एक पूरी की पूरी कहानी कह जाता है यह मुक्तक .....

मैं जिसमे किरदार हुआ करता था
तेरे चेहरे पे वो कहानी देखूँ ।


बेहद मासूम पंक्तियाँ हैं यह ............

हरकीरत ' हीर' said...

मीठी यादों की एक निशानी देखूँ
जज़्बों में पहचान पुरानी देखूँ
मैं जिसमे किरदार हुआ करता था
तेरे चेहरे पे वो कहानी देखूँ ।

Wah bhot khoob......!!!

द्विजेन्द्र ‘द्विज’ said...

वाह -वाह

बहुत खूबसूरत शेर
.


www.dwijendradwij.blogspot.com

द्विजेन्द्र ‘द्विज’ said...

ढलते मौसम में इक शाम सुहानी देखूँ
अपनी तस्वीर भी देखूँ तो पुरानी देखूँ
आरजु ऐसी न थी ये वक्त भी आ जायेगा
अपने सर पे तेरे जूतों की निशानी देखूँ

hahahahahahahahahahah
vaah- vaah

हरकीरत ' हीर' said...

मीठी यादों की एक निशानी देखूँ
जज़्बों में पहचान पुरानी देखूँ
मैं जिसमे किरदार हुआ करता था
तेरे चेहरे पे वो कहानी देखूँ ......

Waah Waah....! Bhot koob.....

जितेन्द्र ‘जौहर’ Jitendra Jauhar said...

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जितेन्द्र ‘जौहर’
(अतिथि संपादक ‘सरस्वती सुमन’)
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सोनभद्र (उ.प्र.) 231218.
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ब्लॉग : jitendrajauhar.blogspot.com