गुनगुनी सी हवा है बहूँ ना बहूँ
अजनबी वेदना है सहूँ ना सहूँ
मुस्कुराते हुए गीत और छन्द में
अनमनी सी व्यथा है कहूँ ना कहूँ ?
1/10/2007
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न तो साहित्य का बड़ा ज्ञाता हूँ,
न ही कविता की
भाषा को जानता हूँ,
लेकिन फ़िर भी मैं कवि हूँ,
क्यों कि ज़िन्दगी के चन्द
भोगे हुए तथ्यों
और सुखद अनुभूतियों को,
बिना तोड़े मरोड़े,
ज्यों कि त्यों
कह देना भर जानता हूं ।
12 comments:
panne kai aur the shocha likhu ya na likhu,jab aaya tumhare dar par to bandhta hi chalaa gaya.
जानता था कि पल पल अकेला ही हूँ
सोचता हूँ कहानी कहूँ न कहूँ
ताजमहली मुझे कर दिया पीर ने
इश्क पाकर तुम्हारा ढहूँ न ढहूँ
मुक्तक और टिप्पणियां सभी लाजवाब हैं.
बधाई.
सुन्दर
सुन्दर....कभी लिखा था...
हवा हूँ
हवा हूँ.....
हल्की सी.... हँसती हुई....
पत्तों में गुदगुदी करती हुई.....
पतंग को चगती हुई....
बादल के पीछे चलती हुई....
हवा हूँ.....
गर्मी की लू में जलती हुई.....
सागर को तंग करती हुई....
बेचैन...बदमिज़ाज....मचलती हुई....
हवा हूँ.....
तूफाँ में बदलती हुई.....
बादल के संग बेरहम बरसती हुई....
तूफाँ मे कश्ती डुबोते हुई....
हवा हूँ.....
थोड़ी नम.... थोड़ी सँभली हुई....
घर के चूल्हे में जलती हुई....
फूलों को छू कर हँसती हुई....
जीते हुई....जिन्दगी देते हुई...
अति सुंदर, अनूप भाई.
हवा बनके तुम यूँ ही बहते रहो
वेदना सदा जग की सहते रहो
मन में जो भी व्यथा हो तुम्हारे अगर
उसको खुद से खुद को ही कहते रहो
क्योंकि-
सूरज़ चमकता नहीं स्वयं के लिये।
नीर बहता नहीं स्वयं के लिये।
वृक्ष फलता नहीं स्वयं के लिये।
बादल बरसता नहीं स्वयं के लिये।
दिव्यभ,अनुराग,संजय,समीर भाई !
मेरी अनमनी व्यथा आप तक पहुँच सकी , उस के लिये धन्यवाद !
राकेश जी ! आप की प्रशंसा तो आशीश है ।
भावना जी ! अच्छी लगीं आप की पंक्तियां ।
बेजी ! बहुत अच्छा लिखती हो , तुम्हारे 'ब्लौग' पर और भी कविताएं पढीं ।
sundar !
Bahut barhiya laga ye muktak, maja aa gaya parh kar ..
nice one..Cheers
Chintan
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