5/03/2006

दो कविताएं

देखो मान लो
कल रात
तुम मेरे
सपनों में
आई थीं ,

वरना
सुबह सुबह
मेरी आँखो की
नमी का मतलब
और क्या
हो सकता है ?

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चलो
अब उठ जाओ
और
जमानें को
अपनें चेहरे की
ज़रा सी रोशनी दे दो

देखो
सूरज खुद
तुम्हारी खिड़की पर
तुम से रोशनी
मांगनें आया है ।

6 comments:

Udan Tashtari said...

अनूप जी,

दोनो ही कम शब्दों मे गहरी बात कह रही हैं, बहुत बधाई...

समीर लाल

Anonymous said...

गागर में सागर ,वाह !

अनूप भार्गव said...

edprehiem3088667172 भाईसाहब :

मेरे ज्ञान में कुछ कमी लगी हो तो बतायें ? ये इतनी College Degree का बोझ कैसे उठा सकेगी मेरी अक्षम काया ...
सादर
अनूप भार्गव

रवि रतलामी said...

हिंदी विदेश प्रसार सम्मान प्राप्त होने पर हार्दिक बधाईयाँ!

Chirayu said...

Beautiful verses. Well written, Anoop.

Anonymous said...

और क्या कहूं..बस.... वाह!!!!!!!!